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हेलमेट लगाकर रहते हैं इस गांव के लोग, सस्ती जमीन खरीदने का दे रहे हैं खुला ‘आमंत्रण’

आपको प्रधानमंत्री मोदी की सांसद आदर्श गांव योजना तो याद ही होगी. गांवों की दशा सुधारने के मकसद से चलाई गई इस योजना को ज्यादा समय भी नहीं गुजरा है. लेकिन इस योजना से कितने गांवों को अपनी मंजिल मिली ये बात किसी से छुपी हुई नहीं है. देश की 70 प्रतिशत से अधिक आबादी गांवों में निवास करती है. लेकिन कुछ गांवों को छोड़कर अधिकतर गांव अपनी बदहाली पर आंसू बहाने पर मजबूर नजर आ रहे हैं. महाराष्ट्र का चिरापदा गांव भी अपनी हालत की सुध लेने का इंतजार कर रहा है. दरअसल इस गांव के पास भिवंडी पहाड़ पर रेत माफिया का काला कारोबार बड़ी तेजी से फलता-फूलता नजर आ रहा है.


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एक ऐसा गांव जहां हर आदमी कमाता है 80 लाख रुपए


रेत और मिट्टी निकालते के लिए पहाड़ों पर जोरदार विस्फोट किया जाता है. जिसके चलते चिरापदा गांव में धूल की चादर चढ़ी हुई है. कभी-कभी तो धूल की चादर पूरे गांव को इस तरह ढ़क लेती है कि गांव दिखाई ही नहीं देता. भिवंडी से केवल 6 किलोमीटर बसे इस गांव के लोग धीरे-धीरे अपना बसेरा छोड़कर आसपास के दूसरे गांव में शरण लेने को मजबूर हैं. वहीं यहां पर हालत से समझौता करके रुके लोग, धूल-मिट्टी की वजह से कई बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां बचे लोग अपनी सेहत के लिए पूरे दिन हेलमेट लगाकर घरों से निकलते हैं. इसका कारण है कि खुले में बिना किसी कवच के बाहर निकलने वाले 200 ग्रामीणों को सांस सम्बन्धित बीमारी हो चुकी है. जिसके चलते दूसरे लोगों ने अपने बचाव का ये नायाब तरीका ढूंढ़कर निकाला.


इस गांव के लोग परिजनों के मरने के बाद छोड़ देते हैं अपना आशियाना


वहीं दूसरी तरफ स्थानीय प्रशासन भी रेत माफिया की करतूतों पर लगाम लगाने में नाकामयाब ही साबित हुआ है. कई बार शिकायत करने पर भी रेत माफियाओं के खिलाफ केवल खानापूर्ति ही की जाती है. गांव वालों की हताशा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपनी जमीने बेचने के लिए एक जमींदारों से सम्पर्क साधना शुरू कर दिया है. साथ ही उन्होंने गांव के नुक्कड के पास सबसे ऊंचे पेड़ पर जमीन खरीदने के लिए हस्तलिखित ‘आमंत्रण पत्र’ भी टांग दिया है. गांव वालों का कहना है कि जब भी पहाड़ों पर विस्फोट किया जाता है तो उन्हें डर लगता है कि कहीं कोई बड़ी चट्टान टूटकर गांव पर आकर न गिर जाए. रेत माफियाओं की वजह से ये गांव लगभग खाली होने की करार पर है. फिर भी बचे हुए लोगों को प्रशासन की आंखें खुलने का इंतजार है…Next



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