जिन्न और प्रेतों की कहानियां आपने सुनी भी होगी और पढ़ी भी , लेकिन कोई यह कहे कि उसने सचमुच इस तरह की शक्ति को देखा है या महसूस किया है तो वैज्ञानिक दृष्टीकोण और तर्कशक्ति रखने वाला कोई भी इंसान जवाब देगा कि “क्यों गप्प मार रहे हो भाई.” या “तुम्हारी तबियत तो ठीक है ना?” लेकिन इस बड़े विश्वविद्यालय में जो हुआ वह आपकी वैज्ञानिक दृष्ट्कोण के ऊपर सवालिया निशान लगाने के लिए काफी है. यह युनिवर्सिटी पाकिस्तान की एक जानी मानी युनिवर्सिटी है जिसका नाम है कॉमसेट इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (CIIT). यहां एक सेमिनार में एक अध्यात्मिक हृदय रोग विशेषज्ञ ने यह सिद्ध करने की कोशिश की कि मध्ययुगीन पौराणिक कथाओं में वर्णित जिन्न वास्तव में मौजूद हैं.
युनिवर्सिटी में हुए इस वाकये पर अपना विरोध दर्ज कराते हुए पाकिस्तान के जाने-माने परमाणु वैज्ञानिक परवेज हूडभॉय ने लिखा था कि पाकिस्तान में विज्ञान का इस्लामीकरण किया जा रहा है और नकली विज्ञान सिखाने की यह कोशिश देश के वैज्ञानिक वातावरण पर नकारात्मक असर डालेगा. वर्तमान में हैदराबाद के साहित्य सम्मेलन में आए डॉ. परवेज हूडभॉय ने ‘दी हिन्दू’ अखबार को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि 1980 के दशक से जब पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक हुआ करते थे तब से पाकिस्तान में विज्ञान के इस्लामीकरण की कोशिश हो रही है.
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परवेज से जब भारत में विज्ञान की स्थित के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि आजकल भारत में भी पौराणिक कथाओं को विज्ञान का आधार देने की कोशिश की जा रही है. यह कोशिशें दोनों देशों में विज्ञान की प्रगति को नुकसान पहुंचा रही है. जहां तक बात पाकिस्तान की है तो वहां भौतिकी, गणित और जीव विज्ञान सहित विज्ञान की हर विधा का इस्लामीकरण करने की कोशिश की जा रही है.
अपने लेख में डॉ. परवेज पाकिस्तानी युनिवर्सिटी में हुए इस वाकये का मजाक उड़ाते हुए लिखते हैं कि शायद सीआईआईटी आगे चलकर ‘जिन्न’ आधारित कोई टेलीकॉम्यूनिकेशन नेटवर्क विकसित करे. हो सकता है क्रूज मिसाइल भी जिन्न टेक्नॉलजी पर आधारित हो, हो सकता है कि जिन्न के रसायन विज्ञान पर पाकिस्तान में बड़े स्तर पर काम होने लगे, रिसर्च का यह विषय जिया उल हक के काल में शुरू किया गया था.Next…
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