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258 अपराध कर चुके इस गैंगस्टर का बजता था 70 के दशक में डंका, 2016 में लगाई गई इस जगह मूर्ति

आजादी के बाद लिखा गया चर्चित उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ में, लेखक धर्मवीर भारती द्वारा एक नौजवान लड़के की प्रेम कहानी से लेकर, उसके गुनाहों के रास्ते पर जाने की ऐसी कहानी लिखी है, जिसे पढ़कर कहीं न कहीं समाज की दोहरी सोच की सच्चाई ज्यादातर लोगों को झकझोर कर रख देती है. अक्सर कहानियों या साहित्य को असल जिदंगी का आईना भी कहा जाता है. आप ही सोचिए, समाज में ऐसे कितने ही लोग है जिनकी छवि धूमिल है या फिर किसी अपराध से जुड़े होने पर भी समाज का एक वर्ग ऐसा है जो उनके प्रति न सिर्फ सहानुभूति रखता है बल्कि उनसे काफी प्रभावित भी दिखता है.

crime shadow


1994 के इस गैंगस्टर की जिदंगी को, एक रात में बदला एक दूसरी दुनिया के शख्स ने

जैसे बीहड़ की दस्यु सुंदरी कहे जाने वाली ‘फूलन देवी’ के प्रति सहानुभूति रखने वाले लोगों की संख्या भी कम नहीं है. शायद इसकी वजह ये थी कि समाज में फूलनदेवी पर हुए अत्याचार की कहानी सभी के बीच आम हो चली थी. बहरहाल, ये बात कितनी सही और गलत है इसके पीछे सभी लोगों के अपने-अपने तर्क हैं. लेकिन दूसरी तरफ सहानुभूति से अलग कुछ घटनाएं ऐसी भी हैं, जो किसी के लिए भी ताज्जुब की बात हो सकती है. पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में 258 अपराधिक मामले दर्ज हो चुके ‘ददुआ’ नामक गैंगस्टर की मूर्ति लगाई गई. उसके कारण फतेहपुर के आसपास के गांवों में काफी तनाव की स्थिति देखने को मिली.

कौन था ददुआ

‘ददुआ’ का असली नाम शिवकुमार उर्फ हाफिज थी. कुछ लोगों का मानना है कि बाद में सियासत में कदम रखने वाले ददुआ ने अपना सरनेम पटेल रख लिया था. 70 के दशक में जनादर्न सिंह की गैंग में काम करने वाले ददुआ ने 1982 में अलग होकर अपनी एक नई गैंग बना ली थी. हांलाकि, ददुआ की दहशत 70 के दशक में ही कायम हो चुकी थी. इसके बाद उत्तरप्रदेश के पाठा के जंगलों में दहशत की एक नई कहानी शुरू हो गई. गांव भर में ददुआ का आंतक फैला हुआ था. हांलाकि कुछ लोगों का ये भी कहना है कि ददुआ और उसके लोग बिना किसी कारण के गांववालों को परेशान नहीं करते थे. लेकिन जिसने भी ददुआ के खिलाफ पुलिस को कुछ बताने की कोशिश की, उसका अंजाम बेहद खतरनाक होता था. अपने काले कारनामों के कारण ददुआ का 2007 में एनकांउटर कर दिया गया. उस समय उसकी उम्र 58 साल थी.

dadua

पुलिसवालों और जरूरतमंदों की करता था मदद

गांव के कुछ लोगों का मानना है कि ददुआ ने अपने लिए जो कायदे-कानून बनाए थे उसे वो जरूरत पड़ने पर तोड़ भी देता था. उसने कई बार गरीब गांववालों को पुलिस की जबरन उगाही से भी बचाया था. वहीं दूसरी ओर आधी रात में जंगल में भूख और प्यास से तड़पते पुलिसवालों को खाने-पीने का सामान भी पहुंचाया करता था. उसने पैसों की कमी से जूझ रहे कई लोगों की मदद भी की थी. हांलाकि, गांव का एक वर्ग इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता.

2007 encounter of dadua

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राजनीति में दखल

ददुआ को हमेशा से दबंग और ताकत पाने की भूख थी. इस वजह से उसने चुनावी दंगल में उतरने का फैसला किया. जिसमें वो काफी हद तक कामयाब रहा. राजनीति में उसकी एक अलग पहचान बन गई. जिसकी बदौलत आज उसके परिवार के लोग उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक खास चेहरे हैं. उसका भाई बालकुमार पटेल, बेटा वीर सिंह, बहू ममता पटेल आदि रिश्तेदार राजनीति में हैं.

दूसरे नामों की चर्चा

गांव में ददुआ और उसकी पत्नी की मूर्ति लगाने पर समाज दो भागों में बंटा हुआ नजर आ रहा है. कुछ तो इसे अपराध को पनाह देने के रूप में भी देख रहे हैं, तो दूसरी ओर अम्बिका पटेल, निर्भय गुज्जर, प्रकाश शुक्ला आदि अपराध की दुनिया के कुछ चर्चित नामों की मूर्ति लगाने की खबरों ने माहौल को और भी तनावपूर्ण बना दिया है…Next

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