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यहां नीम का पेड़ बना संकटमोचक, ग्लूकोज की बोतलें लेकर मरीज आए इनकी शरण में

विदेश नीति, कोहिनूर हीरा, उत्तर प्रदेश चुनाव, काला धन, उद्योगपतियों को मिलने वाली सुरक्षा, नेताओं की बेतुकी बयानबाजी, अगर आपको ये मुद्दे बड़े लगते हैं तो आप राजस्थान की ये घटना पढ़ने के बाद सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि देश के हालात इससे भी ज्यादा खराब है और हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि इंसान को जिंदा रहने के लिए खुद के लिए जंग करनी पड़ रही है.
आप किसी सरकारी अस्पताल का जायजा लेकर देखिए जहां पर आपको हालात बद से बदतर नजर आ सकते हैं लेकिन जरा सोचिए, खुले आसमान के नीचे खुद स्वास्थ्य सुविधाओं का जुगाड़ करते लोगों को देखकर आपके मन में सबसे पहले क्या बात आएगी.
बेशक, कुछ लोग सोच सकते हैं कि पैसे बचाने के लिए कुछ लोग ऐसा कर रहे होंगे या फिर अस्पताल में लोगों को भर्ती करने की क्षमता नहीं है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि फिर हम सरकार को क्यों चुनते हैं? अगर हालात के भरोसे ही रहना है तो? फिर व्यवस्था का क्या अर्थ रह जाता है?
पूर्वी राजस्थान में एक नजारा सभी के लिए बहुत चौंकाने वाला था. दरअसल, मरीजों की भीड़ अस्पताल के अंदर नहीं बल्कि बाहर के नीम के पेड़ के नीचे बैठकर खुद को जिंदा रखने के जुगाड़ में लगी थी.
नीम के पेड़ पर ग्लूकोज की बोतलें लटकी हुई थी, वहीं दूसरी ओर अधमरी हालत में मरीज बैठने को मजबूर थे.
राजस्थान के ढोलपुर जिले में सैपऊ कम्युनिटी हेल्थ के बाहर का ये नजारा बेशक वहां रहने वाले लोगों के लिए आम हो, लेकिन शहरों और सुख सुविधाओं से लेस लोगों के लिए ये बहुत चौंका देने वाला नजारा था.
इस अस्पताल में 15 बेड है, इसके अलावा यहां 200 इनडोर मरीज के इलाज की व्यवस्था है. इन दिनों डेंगू और चिकनगुनिया के मरीजों की तादाद बढ़ती जा रही है, जिसकी वजह से अस्पताल प्रशासन अपनी सुविधाओं में बढ़ोत्तरी नहीं कर पा रहा है.
अस्पताल के इंचार्ज डॉ चरणजीत सिंह का कहना है कि ‘हम और ज्यादा मरीज भर्ती नहीं कर सकते थे और मरीजों को जल्द से जल्द इलाज की जरूरत थी इसलिए हमें ये कदम उठाना पड़ा.’
जहां एक ओर सरकार नई-नई योजनाओं से जनता की वाह-वाही बटोरने में लगी हुई है, वहां दूसरी तरह देश से बदतर हालातों की ऐसी तस्वीरें विकास की दोहरी तस्वीर पेश करती है.

विदेश नीति, कोहिनूर हीरा, उत्तर प्रदेश चुनाव, काला धन, उद्योगपतियों को मिलने वाली सुरक्षा, नेताओं की बेतुकी बयानबाजी. अगर आपको ये मुद्दे बड़े लगते हैं तो आप राजस्थान की ये घटना पढ़ने के बाद सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि देश के हालात इससे भी ज्यादा खराब हैंं और हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि इंसान को जिंदा रहने के लिए खुद के लिए जंग करनी पड़ रही है. आप किसी सरकारी अस्पताल का जायजा लेकर देखिए, जहां पर आपको हालात बद से बदतर नजर आ सकते हैं लेकिन जरा सोचिए, खुले आसमान के नीचे खुद स्वास्थ्य सुविधाओं का जुगाड़ करते लोगों को देखकर आपके मन में सबसे पहले क्या बात आएगी.



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बेशक, कुछ लोग सोच सकते हैं कि पैसे बचाने के लिए कुछ लोग ऐसा कर रहे होंगे या फिर अस्पताल में लोगों को भर्ती करने की क्षमता नहीं है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि फिर हम सरकार को क्यों चुनते हैं? अगर हालात के भरोसे ही रहना है तो? फिर व्यवस्था का क्या अर्थ रह जाता है? पूर्वी राजस्थान में एक नजारा सभी के लिए बहुत चौंकाने वाला था. दरअसल, मरीजों की भीड़ अस्पताल के अंदर नहीं बल्कि बाहर के नीम के पेड़ के नीचे बैठकर खुद को जिंदा रखने के जुगाड़ में लगी थी. नीम के पेड़ पर ग्लूकोज की बोतलें लटकी हुई थी, वहीं दूसरी ओर अधमरी हालत में मरीज बैठने को मजबूर थे.

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राजस्थान के ढोलपुर जिले में सैपऊ कम्युनिटी हेल्थ के बाहर का ये नजारा, बेशक वहां रहने वाले लोगों के लिए आम हो, लेकिन शहरों और सुख सुविधाओं से लेस लोगों के लिए ये बहुत चौंका देने वाला नजारा था. इस अस्पताल में 15 बेड है, इसके अलावा यहां 200 इनडोर मरीज के इलाज की व्यवस्था है. इन दिनों डेंगू और चिकनगुनिया के मरीजों की तादाद बढ़ती जा रही है, जिसकी वजह से अस्पताल प्रशासन अपनी सुविधाओं में बढ़ोत्तरी नहीं कर पा रहा है.


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(प्रतीकात्मक तस्वीर )

अस्पताल के इंचार्ज डॉ चरणजीत सिंह का कहना है कि ‘हम और ज्यादा मरीज भर्ती नहीं कर सकते थे और मरीजों को जल्द से जल्द इलाज की जरूरत थी इसलिए हमें ये कदम उठाना पड़ा.’ जहां एक ओर सरकार नई-नई योजनाओं से जनता की वाह-वाही बटोरने में लगी हुई है, वहां दूसरी तरह देश से बदतर हालातों की ऐसी तस्वीरें विकास की दोहरी तस्वीर पेश करती है…Next



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