‘शहीदों की चिताओं पर हर बरस लगेंगे मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा’. बचपन में शहीदों पर गर्व करने के लिए ये लाइन हम पढ़ते और सुनते आएं हैं लेकिन सवाल ये है कि क्या यही सोचकर हम हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहें? आखिर ऐसा कोई दिन क्यों न आए कि हमारे जवान सरहद पर शहीद ही न हो बल्कि दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देकर जीत का जश्न मनाए. ऐसा लगता है कि सरकार ने ये मान लिया है कि जवानों की किस्मत में तो शहीद होना ही लिखा है. अब भला कोई क्या कर सकता है, सोशल मीडिया पर निंदा करने के अलावा. चलिए, ये तो बात हुई जर्जर पड़ चुकी सोच की. अब बात करते हैं उस पिता के जज्बे की जिनके दोनों ही बेटे भारतीय सेना में थे और उन्होंने दोनों बेटों को खो दिया.
78 साल के जगनारायण सिंह बिहार के भोजपुर जिले में रहते हैं. बीते रविवार उरी में भारतीय सेना पर हुए हमले में उन्होंने अपने दूसरे बेटे को खो दिया. उरी में शहीद हुए 18 जवानों में जगनारायण सिंह के छोटे बेटे हवलदार अशोक कुमार सिंह भी शामिल थे. इससे पहले उनके बड़े बेटे 30 साल पहले बीकानेर में हुए आतंकी हमले में शहीद हो गए थे. अब 30 साल बाद अपने छोटे बेटे के शहीद होने पर 78 साल के इस पिता के मुंह से ऐसे शब्द निकले, जिसे सुनकर किसी के भी आंखों में आंसू आ जाएंगे.
अपने बेटे को तिरंगे में लिपटा देखकर उनकी आंखों से चंद आंसुओं की बूंदें जरूर बह गई, लेकिन अगले ही पल उन्होंने पूरे हौसलें के साथ कहा कि ‘मैं अब खुद आतंकवादियों से भिड़ना चाहता हूं. सरकार को भी इस कायराना हमले पर सख्त कदम उठाना चाहिए.’ वहीं दूसरी तरफ शहीद की पत्नी ने कहा ‘मुझे सरकार से किसी भी तरह की मदद नहीं चाहिए. मुझे सिर्फ कार्रवाई चाहिए, कायरों की तरह सेना पर हमला करने पर. जो मेरा सबकुछ था वो तो चला गया, अब मुझे किसी चीज की कोई उम्मीद नहीं है.’ उधर अपने दोनों बेटों को खो देने के बाद भी 78 साल के एक नेत्रहीन पिता के ऐसे जज्बे को देखकर सभी ने सलाम किया…Next
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