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केंद्रीय विद्यालयों में प्रार्थना को बताया हिंदू धर्म का प्रचार, अब अदालत में होगा फैसला!

जरूर याद होगी जो कुछ ऐसी होती है।

असतो मा सदगमय!

तमसो मा ज्योतिर्गमय!

मृत्योर्मा अमृतं गमय।।


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बता दें कि केवल केंद्रीय विद्यालयों में ही नहीं अपितु कई सारे राज्यों के सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में भी कक्षाओं से पहले हर सुबह प्रार्थना का आयोजन किया जाता है। अब वेद की ये ऋचाएं भी सुप्रीम कोर्ट में घसीट दी गई हैं। केंद्रीय विद्यालयों में हर रोज सुबह होने वाली हिंदी-संस्कृत की प्रार्थनाओं पर विवाद खड़ा हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केन्‍द्र सरकार और केन्‍द्रीय विद्यालयों को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये बड़ा गंभीर संवैधानिक मुद्दा, जिस पर विचार जरूरी है।


50 सालों से चल रही है प्रार्थना

सुप्रीम कोर्ट में विनायक शाह ने याचिका लगाई है, जिनके बच्चे केंद्रीय विद्यालय में पढ़े हैं। याचिका के मुताबिक देश भर में पिछले 50 सालों से 1125 केंद्रीय विद्यालयों की प्रार्थना हो रही है। ये संविधान के अनुच्छेद 25 और 28 के खिलाफ है और इसे इजाजत नहीं दी जा सकती है। कानून के मुताबिक, राज्यों के फंड से चलने वाले संस्थानों में किसी धर्म विशेष को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता।


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प्रार्थना से धार्मिक मान्यता को बढ़ावा ?

याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार और केंद्रीय विद्यालय संगठन को नोटिस जारी कर पूछा है कि, रोजाना सुबह स्कूल में होने वाली हिंदी और संस्कृत की प्रार्थना से किसी धार्मिक मान्यता को बढ़ावा मिल रहा है? इसकी जगह कोई सर्वमान्य प्रार्थना क्यों नहीं कराई जा सकती?


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4 हफ्ते में सरकार देगी जवाब

सवालों के जवाब कोर्ट ने 4 हफ्ते में तलब किये हैं। कोर्ट इस बात पर फैसला करेगा कि क्या इससे एक धर्म को बढ़ावा मिल रहा और संविधान का उल्लंघन हो रहा है? बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस आरएफ नरीमन ने कहा कि यह एक बहुत महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दा है। जानाकारी के लिए बता दें, हिंदी और संस्‍कृत की प्रार्थना धर्म विशेष हिंदू का प्रचार करती हैं, जो अनुच्छेद 28 और 19 का उलंल्घन है।

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स्कूली प्रार्थनाएं संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन है

याचिका में कहा गया है कि सभी धर्म और संप्रदाय के बच्चों को ये प्रार्थनाएं गानी होती हैं और सुबह की सभा में प्रार्थना में हिस्सा लेना अनिवार्य होता है। इसके साथ ही प्रार्थना में कई सारे संस्कृत के शब्द भी शामिल होते हैं। विनायक शाह ने कहा कि ये स्कूली प्रार्थनाएं संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन हैं। संविधान हर नागरिक को इस बात की इजाजत देता है कि वे अपने धर्म का पालन करे। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य प्रायोजित कोई भी स्कूल एक धर्म को प्रोत्साहित नहीं कर सकता।…Next



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